KATHAK NRITYA PRADARSHAN KA KRAM

कथक नृत्य प्रदर्शन का क्रम

कथक नृत्य के हर प्रदर्शन का सर्वप्रथम ध्यय होता है कि वो सभी प्रकार के दर्शकों का मन मोह ले। साधारतया इस नृत्य को प्रस्तुत करने का एक क्रम स्थापित किया गया है। जिस किसी भी ताल में नर्तक नाच रहा है वह अपने नृत्य के अंशों को क्रमानुसार ही प्रस्तुत करता है। वर्तमान काल में प्रदर्शन के समय सीमा अनुसार प्रस्तुतियां की जाती है पर पूरा प्रदर्शन देखने का अलग ही महत्व है। नृत्य प्रदर्शन का क्रम कुछ इस प्रकार है –

१. वंदना– किसी भी प्रदर्शन की शुरुआत ईश्वर को स्मरण करके की जाती हैं। नृत्य के प्रारंभ में शिव ,गणेश या अपने गुरु की वंदना गायी जाती है। अपने घराने की परंपरा के अनुसार स्तुति या वंदना का चयन किया जाता है।

२. थाट– मंच पर आने के पहले तबले पर ठेका और हारमोनियम पर लेहरा बजने लगता है। नर्तक मंच पर किसी एक मुद्रा में थाट दर्शाता है। जयपुर एवं लखनऊ घराने के नर्तक अपने अपने ढंग से थाट दर्शाते हैं ।ग्रीवा एवं नेत्र संचालन करने का यह अच्छा अवसर प्रदान करता है ।

३. आमद – नृत्य प्रारंभ करने का यह सर्वप्रथम तोड़ा है।

४. प्रणामी – प्रारंभिक आमद के बाद नर्तक अपने किसी तोड़े द्वारा दर्शकों को प्रणाम या सलाम करता है। इस तोड़े को प्रणामी या सलामी कहते है । समय के साथ आजकल कई बार स्तुति ,प्रणामी के स्थान पर प्रस्तुत की जा रही है।

५. तोड़ा और परन – नृत्य के इस भाग में आ कर नर्तक अपनी कुशलता तोड़े ,परन , परमिलु, आदि प्रस्तुत करके दिखाते हैं ।तरह तरह के बोलों की रचनाएं प्रस्तुत की जाती हैं।घराना अनुयायि नटवरी के बोल या तबले और पखवाज के बोलों को पेश किया जाता है। तोड़े को ताल दे कर पढंत करते हैं और फिर उन्हें नाच कर दिखाते हैं।

६. चक्रदार– यह अंश तोड़ा और परन का ही विस्तारित रूप है। इसमें तोड़ा तीन बार नाचने के बाद सम पर आता है। नर्तक की तिहैयों की गिनती कई बार दर्शकों का मन मोह लेता है। चक्करों के बाद सठीक सम पर आने की रियाज़ की जाती है।

७. कवित्त– ब्रज भाषा में रचित कवित्त का मुद्रा एवं अंग संचालन द्वारा भाव रहित प्रदर्शन किया जाता है।

८. गत एवं गत भाव – नर्तक गत में नृत्य के गतियों को दर्शाता है । गत भाव के ज़रिए किसी भी कथानक के भाव को प्रदर्शित किया जाता है। कभी कभी ठुमरी ,ग़ज़ल या भजन से भी भाव और रस का प्रदर्शन किया जाता है।

९. ततकार– इस अंतिम खंड में लय द्रुत कर दी जाती है। नर्तक विभिन्न लयकरियां, तबला वादक के साथ सवाल जवाब, घुंघरुओं के ध्वनि में उतार चढ़ाव इत्यादि कलाओं को दर्शक के सम्मुख रखता है।

अपने अपने घरानों के अनुसार नर्तक इस क्रम में अपना नृत्य प्रस्तुत करता है । घराना एवं अपने शैली और अंदाज़ , का सामान्य फर्क हर प्रदर्शन में देखने को मिलता है और शायद इसलिए हर एक प्रदर्शन एक अलग अनुभव पेश करता है।

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